२५ गते पूर्णिमा -शनिदिन
भादव पूर्णिमा दिनककृत्य :-
स्नान ध्यान कय जलाशयमें भरि (आसन लगा भूमिपरमात्र ) सोना चाँदी ताम्बा या कास्य के वर्तन आगू में राखि पात्र में फल उज्जर फूल (राँरीक),द्रव्य लय दक्षिण मुँहे #सव्य भ’अगस्त्य तर्पण इ मंत्र से करी-
ध्यात्व्य :-तागधारीक(द्विजेत्तर ) अतिरिक्तक व्यक्ति #नमः पाठ करथि
हाथमे जल लए :-
शरीर पर सिक्त करी
ॐ अपवित्र: पवित्राे वा , सर्वावस्थां गताेsपि वा ।
य:स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं , स बाह्याभ्यान्तर: शुचि !!
गंगा विष्णु हरिर्हरि:!!:
आवाहन :-
**ॐ आगच्छ मुनि शार्दूल तेजोरासे जगतपते।
उदयंते लंका द्वारे अर्घोऽयं प्रतिगृह्यताम्।।१!!
#जलाञ्जलि (अर्घ्य):-
ॐ कुम्भयोनि समुत्पन्न मुनीना मुनिसत्तम्।
उदयन्ते लंका द्वारे अर्घोऽयं प्रतिगृह्यताम्।।२!!
#शंखमें द्रव्य ,फल (खीरा)फूल सब वस्तु लय-
ॐ शंखं पुष्पं फलं ताेयं रत्नानि विविधानि च।
उदयन्ते लंका द्वारे अर्घोऽयं प्रतिगृह्यताम्।।३!:
तखन #काशक(राँरीक) फूल लय-
ॐ काश पुष्प प्रतीकाश बह्निमारूत सम्भव।
उदयन्ते लंका द्वारे अर्घोऽयं प्रतिगृह्यताम्।।४!!
ऋषि #पत्नी तर्पण :-
लाेपामुद्रा महाभागे राजपुत्रि पतिव्रते ।
गृहाणार्घ्यम् मया दत्तं मित्रवारुणि बल्लभे ।।५!!
तकर बाद करजोरी इ मंत्र पढि
#प्रार्थना करी-
ॐ आतापी भक्षितो येन वातापी च महावल:।
समुद्र: शोषितो येन स मेऽगस्त्य प्रसीदतु ।।६!!
!!पूर्णिमाकृत्य समाप्तम् !!
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वाजसनेयि तर्पण विधान
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नदी वा पाेखैरमे तीतल धाेती पहिरि /भूमिपर सूखल कपडा(धाेती)पहिरि बाम हाथमें उपमयनकुश (बिरणी),दहिना हाथक अनामिका अांगुर (कनगुरियाक बगलबाला)मे कुशक अाैंठी लगाबी, दहिन हाथमे #तेकुशा -१टा अा दाेसर #तेकुशा जलमे राखि पूब मुँहे सब आङ्गुर के अग्रभाग जकरा देवतीर्थ कहल जाई छैक /अथवा अञ्जलीबद्ध भ’
#जञ अथवा #तिल ल’ इ मंत्र पढैत तर्पण करी-
#देवतर्पण
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ॐ अपवित्रः पवित्राे वा …………………
शिखा(टीक) बान्हि :-
चिदरुपिणी महामाये दिव्यतेज समन्विते
तिष्ठ देवि शिखामध्ये तेजाे वृद्धि कुरुष्वमे !!
ॐतर्पणीया देवा आगच्छन्तु।
ॐ ब्रह्मास्तृप्यताम्।(१-१अञ्जलि )
ॐ विष्णुस्तृप्यताम्।
ॐ प्रजापतिस्तृप्यताम्।
ॐ देवायक्षास्तथा नागा गन्धर्वाप्सरसोऽसुरा:।
क्रूरा: सर्प्पा: सुपर्णास्च तरवो जम्भका: खगा: विद्याधारा जलाधारास्तथैवाकाश गामिन:।
निराधाराश्च ये जीवा: पापे धर्मे रताश्चये
तेषामाप्यायनायै तद्दीयते सलिलं मया।।
आब #उत्तरमुँहे जनेऊ के (नीवीती)#मालाकार क’इ मंत्र पढि तर्पण करी –
ॐ सनकादय आगच्छन्तु।
ॐ सनकश्च सनन्दश्चतृतीयश्च सनातन:।
कपिलश्चा सुरिश्चैव वोढु:पञ्चशिखस्तथा ।।
सर्वे ते तृप्तिमायान्तु मद्दत्तेनाम्बुना सदा।
#ऋषितर्पण
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तेकुशा बदलि ली-
#पूबमुँहे जनेऊ #सव्यराखि कुशक मध्य भाग देवतीर्थ/वा अञ्जलिबद्ध भ’ इ मंत्र सँ दश ऋषिक तर्पणकरी-
ॐ मरीच्यादाय आगच्छन्तु।। -१बेर जल दी
ॐमरीचिस्तृप्यताम्।
ॐ अत्रिस्तृप्यताम्।
ॐ अंगिरास्तृप्यताम्।
ृॐ पुलस्त्यस्तृप्यताम्।
ॐ पुलहस्तृप्यताम्।
ॐ क्रतुस्तृप्यतेम्।
ॐ प्रचेतास्तृप्यताम्।
ॐ बशिष्ठस्तृप्यताम्।
ॐ भृगुस्तृप्यताम्।
ॐ नारदस्तृप्यताम्।
#दिव्यपितृतर्पण
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जनेऊ #अपशव्य अर्थात दाहिना कान्ह पर ल’ #दक्षिण मुँहे #माेडालक इ मंत्र पढि तर्पण करी-
आवाहन :-
ॐ अग्निष्वात्तादय आगच्छन्तु !!
ॐ अग्निष्वात्तास्तृप्यन्तामिदं जलं तेभ्य: स्वधानम:-३-३बेर
ॐ सौम्यास्तृप्यन्तामिदं जलंतेभ्य: स्वधानम:। -३
ॐ हविष्मन्तस्तृप्यन्तामिदं जलं तेभ्य: स्वधानम:।
ॐ उष्मपास्तृप्यन्तामिदं जलं तेभ्य: स्वधानम :।
ॐ वर्हिषदस्तृप्यन्तमिदं जलं तेभ्य: स्वधानम :।
ॐ आज्यापास्तृप्यन्तामिदं जलं तेभ्य: स्वधानम :।
यम तर्पण
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(उपराेक्त विधि अनुसार १४यमक तर्पण करी)
ॐ यमादय अागच्छन्तु ।
ॐ यमाय नम:। ॐ धर्माराजाय नम:।
ॐ मृत्यवे नम:। ॐ कालाय नम:।
ॐ अन्तकाय नम:। ॐ वैवस्वताय नम: ।
ॐ सर्वभूतक्षयाय नम:। ॐऔदुम्वराय नम:।
ॐ दध्नाय नम:। ॐ नीलाय नम:।
ॐ परमेष्ठने नम:। ॐ वृकोदराय नम:।
ॐ चित्राय नम:। ॐ चित्रगुप्ताय नम:।
ॐ चतुर्दशैते यमा: स्वस्ति कुर्वन्तु तर्पिता।
पितृतर्पण
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इ मंत्र सौं सब पितर के #मोडा कुशल’ तीन तीन अञ्जली जल #तिल संगे #अपसव्य जनेऊ कय अर्थात दायाँ कंधा पर ऊल्टा जनेऊ धारण कय दी-
आवाहन-
ॐ आगच्छन्तुमे पितरं इमं गृहं तपोञ्जलिम्।।
ॐ अद्य अमुक गोत्र: ……(अपन गाेत्र)पिता अमुक…..(बाबुक/पापाकनाम) शर्मा तृप्यतामिदं सतिलं जलं तस्मै स्वधा-3बेर।
ॐ अद्य अमुक गोत्र: पितामह……(बाबाकनाम) अमुक शर्मा तृप्यतामिदं सतिलं जलं तस्मै स्वधा-3 बेर।
ॐ अद्य अमुक गोत्र: प्रपितामह……..(परबाबाक नाम ) अमुक शर्मा तृप्यतामिदं सतिलं जलं तस्मै स्वधा -3 बेर।
ॐ तृप्यध्वम्-3बेर।
ॐ अद्य अमुक गोत्र:…….(.नानाक गाेत्र) मातामह…..(नानाकनाम) अमुक शर्मा तृप्यतामिदं सतिलं जलं तस्मै स्वधा -3।
ॐ अद्य अमुक गोत्र: प्रमातामह………(परनानाक नाम)अमुक शर्मा तृप्यतामिदं सतिलं जलं तस्मै स्वधा -3।
ॐ अद्य अमुक गोत्र: वृद्धप्रमातामह……..(बूढानाना ) अमुक शर्मा तृप्यतामिदं सतिलं जलं तस्मै स्वधा -3।
ॐ तृप्यध्वम्-3।
#स्त्रीपक्ष:-
माेडा बदलि ली
ई मंत्र से एक एक अंजली जल स्त्रीपक्षमे जल दी-
ॐ अद्य अमुक गोत्रा…..(अपन गाेत्र) माता अमुकी…..(मायक नाम) देवी तृप्यतामिदं सतिलं जलं तस्यै स्वधा-1बेर।
ॐ अद्य अमुक गोत्रा पितामही……..(दाइक नाम) अमुकी देवी तृप्यतामिदं सतिलं जलं तस्यै स्वधा-1 बेर।
ॐ अद्य अमुक गोत्रा प्रपितामही ……..(.परदाइक नाम)अमुकी देवी तृप्यतामिदं सतिलं जलं तस्यै स्वधा-1बेर।
ॐ तृप्यध्वम्-1बेर।
मातृक स्त्री पक्ष :-
ॐ अद्य अमुक गोत्रा …….(नानाक गाेत्र) मातामही…..(नानीक नाम) अमुकी देवी तृप्यतामिदं सतिलं जलं तस्यै स्वधा-1।
ॐ अद्य अमुक गोत्रा प्रमातामही ……..(परनानीक नाम)अमुकी देवी तृप्यतामिदं सतिलं जलं तस्यै स्वधा-1।
ॐ अद्य अमुक गोत्रा वृद्धप्रमातामही…….(.बूढिया नानीक नाम) अमुकी देवी तृप्यतामिदं सतिलं जलं तस्यै स्वधा-1बेर।
ॐ तृप्यध्वम्।
आब पत्नी भाई संबन्धी आचार्य आ गुरू के इ मंत्र से तर्पण-
अाँजर भरि जल लए:-
ॐ येऽबान्धवा वा येऽन्यजन्मनि बान्धवा:।
ते सर्वे तृप्तिमायान्तु यश्चास्मत्तोऽभिवाञ्छति।।
ये मे कुले लुप्तिपिण्डा पुत्रदारा विवर्जिता:।
तेषांहि दत्तमक्षय्यमिंदमस्तु तिलोदकम्।।
आब्रह्मस्तम्ब पर्यन्तं देवर्षि पितृ मानवा:।
तृप्यन्तु पितर: सर्वे मातृ मातामहोदय:।।
अतीत कुल कोटीना सप्तद्विपनिवासिनाम्।
आब्रह्म भुवनाल्लोकादिदमस्तु तिलोदकम्।।
आब इ मंत्र से स्नान केलहा #भिजलाहा वस्त्र अंगपोछा के #खूंटगारी कुश पर जल खसा दी-
ॐ ये चाऽस्माकं कुले जाता अपुत्रा गोत्रिणो मृता:।
ते तृप्यन्तु मया दत्तं वस्त्रनिष्पीडिनोदकम्।।
कुश हटादी :-
आब #सव्य अर्थात बायां कंधा पर जहिना जनेऊ पहिरल जाई छैक तीन बेर #सुर्यनारायण के तीन बेर जलक इ मंत्र से अर्घ दी-
ॐ नमोविवस्वते ब्रह्मण भास्वते विष्णु तेजसे। जगत्सवित्रे शुचये सवित्रे कर्मदायिने।।
एषाेऽअर्घ्य : ॐ भगवते श्रीसुर्याय नम:। -३
ॐ विष्णविष्णुर्हरिर्हरि:। इति।
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छन्दोग तर्पण विधान
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छान्दोगी सब देव आ ऋषि तर्पण अहि प्रकार अहि मंत्रे दी
ॐ देवास्तृप्यन्ताम्-3 बेर।
ॐ ऋषियस्तृप्यन्ताम्-3बेर।
ॐ प्रजापतिस्तृप्यताम्-3बेर।
पितरक तर्पण वाजसनेयि जकां सबटा हेतै तथा जनेऊ सब जहिना बाजसनेयि में जहिना जहिना राखै केर क्रम छै ओहिना रहतै।
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नोट- **अगस्ति तर्पण संभव नै हुए त देव ऋषि आ पितर के तर्पण अवश्य करी। अमुक के जगह पर अपन अपन पितरक गोत्र आ नाम लेल जेतै जाहि पितरक जे गोत्र आ जे नाम होईन।नदी वा पोखैर में सेहो तर्पण कय सकै छी।
जँ नै हुएतं (कुशक अभावमे) स्नाने काल तीन तीन आँजुर जल पुरूष पितरक लेल आ एक एक आँजुर जल स्त्री पितराइनक लेल सबहक बेरा बेरी गोत्र आ नाम श्रद्वापूर्वक ल’ हुनका नाम सँअवश्य अर्घ चढादी आ 15 हम दिन अमावस्या तिथि के/पिण्डदान अासीधादान ( 11, 5,3, या एकोटा ब्राह्मण भोजन) अवश्य करा विसर्जन करी जँ पितरक क्षय तिथि मन हुए त ओहू दिन ब्राह्मण भाेजन कराबी ।
दूरस्थ मित्र शुभचिन्तक लाेकनिक अाग्रहके शिराेधार्य करैत अमृतनाथ चिन्तन प्रतिष्ठान द्वारा जनहितमे तर्पणक विधि सम्प्रषित कए रहल छी।
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****पितृजीवी पितृ तर्पणक बाहेक सभ करथि नित दिन !!:
पितृदेवो भव: मातृदेवो भव:।
जय मिथिला जय मैथिल जय मैथिली
ज्योतिर्विद – कृष्णकान्त शास्त्री
विशेष सम्पर्क :- 9860287725
Gmail – Kjha23491@gmail.com